Thursday, 2 August 2012

Discovering the new me!

मेरी सोच......

एक राह पर चल रहें हैं हम ,मंजिल भी एक है ,

तो फिर कैसी हैं येह दूरीयाँ , जब अल्लाह भी एक है।


कह हम बहुत कुछ देते हैं, लेकिन सुनते हम कुछ भी नही ,

अपनी ही उलझनों में बंधे रहते हैं, दुनिया की हमें परवाह नही।


इधर उधर भटकना तो सभी को आता है ,

जो अपनी मंजिल तक पहुँच जाये, वही खिलाड़ी कहलाता है।


वो ज़िन्दगी ही क्या, जिसका कोई लक्ष्य न हो,

वो ज़िन्दगी ही क्या, जो दूसरों के लिए कुर्बान न हो।


ऐसा ही कुछ नज़ारा हम हर रोज़ देखते हैं,

इत्तेफ़ाक यह है.....की "सब चलता है" .....





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